माँ! यूँ तो कई रूपों में,मेरी जिंदगी में छायी हो,
पर सबसे प्यारी तुम,मन की जननी बन जो आयी हो।
हर नेह तुम्हारा अनुपम है,निबाह तुम्हारा उत्तम है,
हो स्नेह लुटाती रहती जो,निस्वार्थ भाव से हम पर।
है मोल नहीं इस ममता का,अनमोल खजाना समता का,
उपहार रुप हो सृष्टि की,आधार मूल हो सब जन का।
जनना-लालन-पालन करती,तुम्हें कह प्रकृति बुलाता हूं,
श्रद्धा का पुष्प चढ़ाकर के,चरणों में शीश झुकाता हूं।
-सनातनी_जितेंद्र मन