हैं और भी दुनिया में सुखन्वर बहुत अच्छे, कहते हैं कि गालिब का है अन्दाज-ए-बयां और". सही कहते हैं गालिब का अंदाज-ए-बयां सबसे जुदा है. मशहूर शायर मिर्जा असदुल्लाह खां (गालिब) की आज जयंती है.
गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1796 को आगरा में एक सैनिक पृष्ठभूमि वाले परिवार में हुआ था. आगरा की जिस हवेली में गालिब का जन्म हुआ था, वह जोधपुर के राजा सूरजसिंह के पुत्र गजसिंह की थी. गालिब पर प्रामाणिक विद्वान मालिकराम ने इसे साबित किया है.
गालिब के हवाले से नाजिम व निजाम नाम की दो शख्सियतों का सूर्यनगरी से गहरा जुड़ाव है. जोधपुर को सूर्यनगरी या नीला नगर के नाम से भी जानी जाती है. मिर्जा गालिब पहले शागिर्द थे - मर्दान अली खां, जो राना, मुज्तर. ये दोनों नाजिम व निजाम उपनाम से शायरी करते थे.
पाकिस्तान से प्रकाशित जोधपुर के शरफुद्दीन यक्ता की पुस्तक बहारे-सुखन और राजस्थान उर्दू अकादमी से प्रकाशित शीन काफ निजाम की पुस्तक "मआसिर शौअरा-ए- जोधपुर" में मर्दान अली खां के बारे में जिक्र मिलता है.
चूंकि गालिब का जन्म जोधपुर के राजा की हवेली में हुआ है, इस लिहाज से भी जोधपुर से उनका बहुत गहरा ताल्लुक है. गालिब के शेरों का मत्न (टैक्स्ट) दुरस्त करने में शीन काफ निजाम की बड़ी भूमिका है.
आगरा से है मिर्जा गालिब का रिश्ता
आगरा शहर के बाजार सीताराम की गली कासिम जान में स्थित हवेली में गालिब ने अपनी जिन्दगी का लम्बा समय गुजारा है. इस हवेली को संग्रहालय का रुप दे दिया गया है जहां पर गालिब का कलाम भी देखने को मिलता है. प्यार से उन्हें लोग मिर्जा नौशा के नाम से पुकारते थे.
गालिब ने महज 11 बरस की उम्र से ही उर्दू एवं फारसी में गद्य और पद्य लिखना शुरू कर दिया था. गालिब उर्दू एवं फारसी भाषा के महान शायर थे. 13 वर्ष की आयु में उनका निकाह नवाब ईलाही बख्श की बेटी उमराव बेगम से हुआ था.
गालिब और असद नाम से लिखने वाले मिर्जा मुगल काल के आखिरी शासक बहादुर शाह जफर के दरबारी कवि भी रहे हैं. आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में अपनी जिन्दगी गुजारने वाले गालिब को मुख्यत: उनकी उर्दू गजलों के लिए याद किया जाता है. उन्होंने अपने बारे में खुद ही लिखा था कि दुनिया में बहुत से कवि-शायर जरूर हैं, लेकिन उनका लहजा सबसे निराला है.
गालिब के चंद मशहूर अशआर :
* ये इश्क़ नहीं आसां, बस इतना समझ लीजिए/ इक आग का दरिया है और डूबकर जाना है
* उनके देखे से जो आ जाती है चेहरे पर रौनक/ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
* इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया/ वरना हम भी आदमी थे काम के
* कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीरे-नीमकश को/ ये ख़लिश कहां से होती, जो जिगर के पार होता
* हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले/ बहुत निकले मेरे अरमाँ लेकिन फिर भी कम निकले