शीर्षक: अतृप्त प्रेम
समुद्र का किनारा
पथरीली चट्टान
अतीत के पन्ने
और, वो तेरी याद
उनमें तुम्हारे कंधे पर
मेरे जज्बातों का स्पर्श
आज भी कुछ कहते
अफ़सोस सिर्फ इतना
जिन्दगी बिखर कर
चाँदनी न बन सकी
मन-शान्ति न बन सकी
धुँध ही अब नजर आती
सुनहरी दोपहर न बन सकी
चंचल समय की नदी
अगर, विचलित नहीं होती
तो आज तुम मेरी होती
अजनबी न कहलाती
मेरे अंगुलियों के पोर
तुम्हारे केशु में, जिन्दगी के
नये आयाम तलाशते
यों ही तुम,तन्हाई में
अपने नयन, सजल
बंद कर न, झपकाते
समुद्र की उतंग लहरें
विश्वास की कुछ बूंदों का
जब भी देती एक सम्पर्क
लगता, आज भी तुम हो
मेरे आसपास
मानो मेरे चेहरे पर
अपनी जुल्फे फैला रही
तुम्हारी अंगुलियों के पोर
मेरे सूखे होठों पर
कुछ लिख रहें
शायद यही ना
सजन, जिन्दगी नही रूकती
हर रोज आगे बढ़ती
तूम क्यों हो रुके ?
तूम क्यों झुके ?
तूम क्यों टूटे ?
जब सारा जग स्थिर
तूम क्यों रहते विचलित ?
महसूस करो
आज भी हूँ, तुम्हारे आसपास
प्रेम को कमजोरी नहीं
बनाओ, अपना आत्मविश्वास
प्यार को, नया नाम दो
कोई, नया अंजाम दो
आनेवाले वक्त को
अपना गहरा सलाम दों
मेरा अतृप्त प्रेम का
उसको दान दो
✍️कमल भंसाली