मोहब्बत बरसती है जब तुम हंसते हो
मेरी धड़कनों में अब बस तुम ही तुम बसते हो
वक्त थम जाता है जब तुम मेरे संग चलते हो
इसी बेकरारी में घड़ी की सुईयां रहती हैं कि ये दूरियां मिटे किसी रोज
फिजाएं झूम उठती है जब तुम कुछ कहते हो
तुम्हारी मोहब्बत का पैगाम लिए मुझसे लिपटे ये हर रोज
आईने भी छुपा-छुपा रहता है,की ना कोई देख ले इस दिल का चोर
बेख्याली में भी हम घबराए फिरते हैं, चारों तरफ जब तुम दिखते हो हर रोज
हर लम्हा इंतजार करता है ये इज़हार-ए-इश्क होये किसी रोज
आफताब भी चाहता है की वो चांदनी मिले उसे हर रोज
Deepti