जब कोई नदी पहाड़ों से निकलती है, क्या उसे मालूम होता है वो कहा जा रही है? क्या वो खुद चुनती है मंजिल अपनी या उसका समंदर में समा जाना पहले से तय होता है? मुझे लगता है एक नदी अपनी राह खुद चुनती है, वो बहती है जहाँ उसका मन करता है, कभी पहाड़ों से कभी खाली मैदानों से, मै सोचता हूँ उसे जाके बता दू की वो राह कोई भी ले मंजिल उसकी समंदर ही है, क्या वो सहम जाएगी ये सुनकर? जैसे एक इंसान सहम जाता है मौत की बात सुनकर