My Wonderful Poem..!!!
जी वजूद सबका अपना अपना है
और सब खुद ही यह तय करेंगे कि
किसे कब कहाँ पर होना है ओर
किसे कब कहाँ कहाँ नहीं होना है
माना दो ग़ज़ दूरी आज मजबूरी है
पर आग🔥पेट की भी तो बूझाना है
धन कुबेर का हर घर में भरा नहीं है
बंदे को घर-संसार भी तों चलाना है
घर बैठे खाना ख़ुद चले नहीं आता हैं
खानें के लिए बंदे कमाने भी जाना है
एहतियातन कोरोना से बचना तो है
पर ज़िम्मेदारियाँ-रथ भी तों ढोना है
सौ यारों हर पीपीई से नाता जोड़ों
कोरोनाको रोज़मर्रा दुश्मन मान बचों
प्रभुजी की लिखी टलती हरगिज़ नहीं
सौ डर का भी डट कर मुक़ाबला करो
ओर अपना गुजरान चलाने जितना ही
घर से बाहर बा-वजह बस निकलोगे
कोरोना कैरियर की शृंखला से बच
फ़ैमिली ज़िम्मेदारी भी तो निभाना है
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