तुम अजनबी हो,
लेकिन अनजान होकर भी जाने-पहचाने से लगते हो..
ना वास्ता किसी तरह का ना रास्ते मिले हैं कभी,
फिर भी जाने क्यों यूँ लगता है जैसे हम मिले हैं कहीं !!
इन भावनाओ का, सम्वेदनाओं का हृदय पर ज़ोर नही,
तुम सिर्फ एक अजनबी हो कोई और नही !!
फिर भी जाने क्यों लगते हो अपने-अपने से,
कुछ-कुछ हकीकत ओर कुछ तो सपने से !!
खैर, हो तो तुम एक अजनबी ही....
-Jyoti Prajapati