My Sorrowful Poem..!!!
लौ सिमट रही आज लम्हा लम्हा
जिन्दगी,दम बेदम हो रहे है
घूँट रही हैं साँस हर एक जिस्म
की,बंजर हर शहर हो रहे है
मातम-ओ-ग़मों के साये आम है
मौत के बादल मंडरा रहे हैं
फ़ेहरिस्तों के पन्ने तक भर गए हैं
ज़मीँ दफ़्न को कम हो रही हैं
चिमनियों से शबों का धूआँ उठ के
मूसलसल भँवर-सा हो रहा है
दामनों को अपनो के काँधे तरसते,
आख़री सफ़र महदूद हो रहे है
अपनापन बात ख़्वाबों की है,बहते
अश्क़ आँखों से खुश्क हो रहे हैं
जाएँ तो जाएँ कहाँ,ख़ुशी के महज़
दो पल मयस्सर तक न हो रहे हैं
प्रभुजी कहाँ रुकेगा कारवाँ बेमौत
मौत का,काठी-जनाज़े कम हो....
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