My Motivational Poem...!!
यारों यहाँ जड़ों से अपनी
उखड़ कर भी लोग जी तो लेते हैं
फ़ानी-ओ-मजबूर ज़िंदगी है
उजड़ कर भी लोग जी तो लेते है
जी हाँ खोएँ अनगिनत अपने
फिर भी तो लोग कैसे जी लेते हैं
माना मायूसीयों का क़हर है
बरपा हर-सुँ, फ़र्क़ क्या पड़ता है
पर हर हालातों से समझौता
कर के भी तो लोग जी ही लेते हैं
ओर चाहे ग़र तो कर भी क्या
सकते हैं मजबूरी हसके सह लेते हैं
फ़ितरत का ग़ुलाम आदमी हैं
मुसीबत आने पर सर झुका लेते हैं
वरना चाँद मंगल से ग्रहों को
छूते ही फ़ानी हस्तीको भूल बैठते हैं
प्रभुजी ही सर्वोपरी शक्ति हैं
लठ़ के आदी खा के समझ पाते हैं
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