💥☀️देवभाषा संस्कृत की विशेषता☀️💥
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संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक भाषा है। इसे देववाणी अथवा सुरभारती भी कहा जाता है। यह विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा है जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार की एक शाखा है।
#आर्यवर्त #gkaaryvrt
आधुनिक भारतीय भाषाएं जैसे, हिंदी, बांग्ला, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गए हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। भीम राव अम्बेडकर का मानना था कि संस्कृत पूरे भारत को भाषाई एकता के सूत्र में बाँध सकने वाली इकलौती भाषा हो सकती है, अतः उन्होंने इसे देश की आधिकारिक भाषा बनाने का सुझाव दिया था।
आज में आपको देवभाषा संस्कृत की कुछ विशेषता से अवगत कराना चाहता हूं। आप पूरा लेख अवश्य पढ़ना।
(1) अक्षरों की क्रमबद्धता से बनती रोचक काव्य पंक्ति।
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अंग्रेजी में *THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG.* ऐसा प्रसिद्ध वाक्य है। अंग्रेजी आल्फाबेट के सभी अक्षर उसमें समाहित है। किन्तु कुछ कमी भी है....
(1) अंग्रेजी अक्षरें 26 है और यहां जबरन 33 अक्षरों का उपयोग करना पड़ा है। चार O हैऔर A तथा R दो-दो है।
(2) अक्षरों का ABCD... यह स्थापित क्रम नहीं दिख रहा। सब अस्तव्यस्त है।
सामर्थ्य की दृष्टि से संस्कृत बहुत ही उच्च कक्षा की है यह अधोलिखित पद्य और उनके भावार्थ से पता चलता है।
*क: खगीघाङ्चिच्छौजा झाञ्ज्ञोSटौठीडडण्ढण:।*
*तथोदधीन्* *पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।*
अर्थात्- पक्षीओं का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का , दुसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु।संहारको में अग्रणी, मनसे निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन? राजा मय कि जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं। "
आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजनों इस पद्य में आ जाते हैं इतना ही नहीं, उनका क्रम भी योग्य है।
(2) एक ही अक्षरों का अद्भूत अर्थ विस्तार।
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माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल "भ" और "र " दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है।
*भूरिभिर्भारिभिर्भीभीराभूभारैरभिरेभिरे।*
*भेरीरेभिभिरभ्राभैरूभीरूभिरिभैरिभा:।।*
अर्थात्- धरा को भी वजन लगे ऐसा वजनदार, वाद्य यंत्र जैसा अवाज निकाल ने वाले और मेघ जैसा काला निडर हाथी ने अपने दुश्मन हाथी पर हमला किया। "
किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल " न " व्यंजन से अद्भूत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य का प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोडे में बहुत कहा है:-
*न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नाना नना ननु।*
*नुन्नोSनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नन्नुनन्नुनुत्।।*
अर्थात् :- जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है।।
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