"न नर्क का भय है न स्वर्ग की इच्छा , तेरा साथ ही है मेरी सुदीक्षा है , है जीवन मेरा अब तेरी प्रतीक्षा न दूजा कोई अब किसी की न इच्छा , माना असीमित अकड़ ले के फिरता जो बोले तू उसके विपरीत करता , अंश तेरी हूँ तू इतना समझ ले , मिला मुझको मिट्टी या बाँहो मे भर ले , जीवन का पन्ना फाड़ा है मैने मगर न अलग कुछ साँसे जुड़ी हैं , है कर्ज मुझपर जो फर्ज सा है , बनी शूल पीड़ा यही मर्ज सा है | "
अंश से ...
-Ruchi Dixit