रोते हुए आता देखो हर इन्सान
हँसता हुआ क्या जाएगा इंसान
आता है जब जैसे कागज़ कोरा
जाता है जब छोड़ पूरा का पूरा
आने जाने के बीच सफ़र है जीवन
रहकर जी लो जैसे जीना है जीवन
न आना बस में न जाना है बस में
रंगमंच किरदारों का सर्कस है जीवन
सुगंधित नव निर्मित मन मधुबन
सामने है कैनवास बड़ा ये जीवन
समझना है जानना है शिद्दत से
अमूल्य है जो मिलता मुद्दत से
सब देखते बाहर मुरझाए फूलों को
पर असल मे जीवन जड़ को न देखा
मिट्टी के ऊपर खड़े वृक्ष का जो है आधार
अंदर मिट्टी के पड़े वही है जड़ का प्रसार
जीवन पनपता है अति गहराई में
इंसान उसे खोजे सतही तराई में
खोकर रंग खुद को है न पहचाना
दौड़ती जन इस भीड़ में न जाना
अस्थिर मन देखा देखी में जो मुड़े
जीवन मे उसी के सारे हैं रंग उड़े
© Alok Sharma