सुकून भरे एक अदने से दिन की तलाश में,
पहले घुट-घुट के जियो
फ़िर तिल-तिल मरो
निचोड़ डालो जवां ज़िस्म से अपने,
ख़ून का एक-एक क़तरा
जबतक कि निढाल होकर
गिर न पड़ो मख़मली बिस्तर पे
जिसे बिछाया गया है
तुम्हारे टूटते-बिखरते सपनों के एवज़ में,
तुम्हारी नींद की क़ीमत पर।
अगली सुबह फ़िरसे उठो, जागो
और अंधे-काले कुँवे में तबतक भागो
कि जबतक आदी न हो जाओ
उसी अँधेरे के
इस क़दर
कि भली लगने लगें तुम्हें
सियाह रातें
और कै होने लग जाये
दिन के उजाले में
के इसके सिवा
दूसरा चारा क्या है
तुम्हारे पास।
भाग तो रहे हो
ज़िंदगी की तलाश में,
पर देखो ज़रा
कहाँ चले आए तुम
भागते-भागते,
सुकून भरे एक अदने से दिन की तलाश में।