हिन्दू धर्म में मूलत: पांच संप्रदाय है- वैदिक, शैव, वैष्णव, स्मार्त, संत। सभी संप्रदाय के उपसंप्रदाय भी है। जैसे वैदिक के आर्य, ब्रह्म समाज आदि, शैव के शाक्त, लिंगायत, गणेश, अघोर, दसनामी, नाग, महेश्वर, कश्मीरी शैव, कापालिक, पाशुपत और नाथ संप्रदाय आदि।
उसी तरह वैष्णव के बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी, गौड़ीय, श्री आदि संप्रदाय आदि। उसी तरह स्मार्त में भी कई उपसंप्रदाय हैं। उसी तरह संत संप्रदाय के अंतर्गत कबीर पंथ, दादू पंथ, रैदास, उदासी पंथ, लालजी पंथ, रामस्नेही पंथ, निरंजनी पंथ, बिश्नोई पंथ, निर्मल, महानिर्वाणी, जूना अखाड़ा पंथ, गोरख पंथ आदि। उक्त सभी संप्रदाय या उपसंप्रदाय में भी अपने अपने गोत्र और उपनाम रखे हुए हैं। जहां तक गोत्र का सवाल है तो यह आपके कुल को दर्शाता है, लेकिन उपनाम में अधिकतर का कोई धार्मिक आधार नहीं है। हालांकि कुछ लोगों और समाज ने अपने गोत्र को ही उपनाम बना रखा है। आओ जानते हैं उपनाम का इतिहास।
- उपनाम को अंग्रेजी में सरनेम (surname) कहा जाता है। भारत में तो उपनामों का समंदर है। अनगिनत उपनाम जिन्हें लिखते-लिखते शायद सुबह से शाम हो जाए। यदि उपनामों पर शोध करने लगे तो कई ऐसे उपनाम है जो हिंदुओं के सभी संप्रदायों में एक जैसे पाए जाते हैं। दरअसल भारतीय उपनाम के पीछे कोई विज्ञान नहीं है। इममें ज्यदातर चार तरह के उपमान शामिल हैं- 1.किसी ऋषि पर नाम पर उपनाम, 2.उपाधी बनी उपनाम, 3.स्थान के नाम पर उपनाम और व्यापार के नाम पर उपनाम।
- भारत में यदि उपनाम के आधार पर किसी का इतिहास जानने जाएंगे तो हो सकता है कि कोई मुसलमान या दलित हिंदुओं के क्षत्रिय समाज से संबंध रखता हो या वह ब्राह्मणों के कुनबे का हो। लेकिन धार्मिक इतिहास के जानकारों की मानें तो सभी भारतीय किसी ऋषि, मुनि या मनु की संतानें हैं, चाहे वह किसी भी जाति, धर्म, वर्ण या रंग का हो।
-Dangodara mehul