महावीर जयंती पर एक सजल
जैन धर्म में है बसा, जीवों का कल्यान।
संविधान ने भी दिया, जीने का वरदान।।
राम कृष्ण गौतम हुए, महावीर की भूमि।
योग धर्म अध्यात्म से, कौन रहा अनजान।।
धर्मों की गंगोत्री, का है भारत केन्द्र।
जैन बौद्ध ईसाई सँग, मुस्लिम सिक्ख सुजान।
ज्ञान और विज्ञान का, भरा यहाँ भंडार।
सबको संरक्षण मिला, हिन्दुस्तान महान।।
चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को, जन्मे कुंडल ग्राम।
वैशाली के निकट ही, मिला हमें वरदान।।
राज पाट को छोड़कर, वानप्रस्थ की ओर।
सत्य धर्म की खोज कर,किया जगत कल्यान।।
सन्यासी का वेषधर, निकल चले अविराम।
छोड़ पिता सिद्धार्थ को, कष्टों का विषपान।।
प्राणी-हिंसा देख कर, हुआ बड़ा संताप।
मांसाहारी छोड़ने, शुरू किया अभियान।।
अहिंसा परमोधर्म का, गुँजा दिया जयघोष।
जीव चराचर अचर का, लिया नेक संज्ञान।।
दया धर्म का मूल है, यही धर्म की जान।
मूलमंत्र सबको दिया , पंचशील सिद्धांत।।
हिंसा का परित्याग कर, अहिंसा अंगीकार।
प्रेम दया सद्भाव को, मिले सदा सम्मान।।
चौबीसवें तीर्थंकर, माँ त्रिशला के पुत्र।
महावीर स्वामी बने, पूजनीय भगवान।।
वर्धमान महावीर जी, बारम्बार प्रणाम ।
त्याग तपस्या से दिया, सबको जीवन दान।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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