तन्हाई से बातें करतें हुऐ "रात"ने जब हाथमें क़लम थाम ली।
शायराना अंदाज़ में जब कटार सी क़लम चली..उस में कौनसी फरियाद जली...?
इस दौर में लोग कोरा कागज़ तक पढ़ने का हुनर रख़ते हैं
आईये.. तराशें हुए इन लफ़्ज़ों की बात सुनते हैं।
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खुली आँखों से ख्वाब! ऊपर से आँखों पर हिजाब!
जानलेवा है शर्ते उसकी; फ़िरभी सुनाये जा रहा है
शहद में मिश्री सा पानदान! उपर से मीठी सी मुस्कान!
न जाने क्यों ये परवाना; फ़िरसे बाती की बातों में आ रहा है
हैं अंधेरा घनघोर; फिर क्यों चांदनी की राह में चकोर!
सोचूँ आग लेके आगोश में; वो जुगनु कहाँ जा रहा है।
©हेली अमरचोली
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