कष्ट कितना भी हो फिर भी मुस्कुराती हो तुम।
बिखरे परिवार को एक साथ मिलाती हो तुम।
यूँ तो तुम्हारी सहन शक्ति बे मिशाल है फिर भी।
कभी काली तो कभी दुर्गा बन जाती हो तुम।
ऐसा नहीं कि कभी तुम्हे राह में रोड़े न मिले मगर।
चूल्हे चौखट से निकल कर पहचान बनाती हो तुम।
-Arjun Allahabadi