दो घड़ी जी लें जिंदगी।
चलो करते हैं ईश्वर की बंदगी।
रूक न जाए जिंदगी की रवानगी।
क्यों बोलो कर रहे हो दिल्लगी।
रोज मनाते थे बेटा हो।
लेकिन बेटा जब मां को वृद्धाश्रम भेजने को तैयार रहते हैं तो क्या ये ही
है जिंदगी,
आंसूओं की बरसात में नहा रही है जिंदगी।
कब्र पर भी दिख रही है दरिंदगी।
आज सच है सिसक रही है जिंदगी। फरियाद कर रही है जिंदगी । ना जाने क्यों गाफिल है लोग।
खुशी घर में है तो बाहर क्या ढूंढते हैं लोग।
रिश्तों में बंदगी है साहब।
फिर क्यों पर विहीन हो गई है जिंदगी।
-Anita Sinha