My Wonderful Poem..!!
यारों नासमझी अभी सर पर चढ़ी है
समझने को तो उम्र सारीं पडी है..
बस इस काफ़ीर ख़्याल के नाम
जाने कितनी ज़िंदगीयाँ उजड़ीं हैं..
नाकाम मोहब्बत की आग 🔥 में
जाने कितनी ही कश्तीयाँ डूबीं हैं..
उजड़े घरौंदे बिछड़े घायल परिन्दें
शमा से कितनी ही जाने जली हैं..
दिवानी हस्तियों को सनम-परस्ती
तो गँवारा पर प्रभु-परस्तीसे दूरी हैं..
आदमी से इन्सान का सफ़र 🛳
तय करने को जीदगीं मिली तो हैं..
पर एक इश्क़ की आँधी में ही यारों
हज़ारों बस्तीयाँ-ओ-हस्तीयाँ उजड़ी..
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