कभी कभी सोचती हूँ,
भूल जाऊं उन सब बातों को,
जो सिर्फ बातें ही थी..
सोचती हूँ, भूल जाऊं उन सब यादों को,
जो अब सिर्फ एक याद है..
ज़िन्दगी के इस सफ़र में,
कितनों से मुलाकातें होती है,
जाने कितनी ही बातें होती है..
कितने ही किस्से बनते हैं,
अनगिनत यादें होती है..
जिन्हें कभी याद भी नही रख पाता मन..
सोचती हूँ कभी कभी,
यूँही भूल जाऊं तुम्हें भी..
पर क्या मुमकिन है भूल जाना,
हर पल हर लम्हा जो जिया है तुमको..
आसान कहां है, खुद को भूल जाना..
हर स्वाँस में बहता हो जो सांस बनकर..
मुमकिन कहाँ है, तुमको भूल जाना...
-Sarita Sharma