जब दो लोगों के बीच का परस्पर प्रेम अपने चरम पर पहुँच जाता है; विश्वास व समर्पण परिभाषित सीमाओं के उस पार चले जाते हैं तो शब्दों की आवश्यकता ही समाप्त हो जाती है। निःशब्दता के लय में एक बिल्कुल ही अनकहा व अनसुना छंद तरंगित होने लगता है। उस छंद को आँखें रचती हैं और हृदय सुनता है।
-Rajeev Upadhyay