हर उम्र का पड़ाव ढूंढ़ता है मुहब्बत के किनारे को।
जो दे सके सुकून चार पल का एक ऐसे सहारे को।
न कोई दिखावा हो न कोई दुनियादारी हो।
स्नेह औऱ प्रेम की ज्यादा समझदारी हो।
जरूरी नहीं कि वह प्यार जिस्मानी हो।
दो पवित्र मन के मिलने की कहानी हो।
समाज क्या कहेगा लोग क्या बोलेंगे ।
कुछ दूर चलोगे तो लोग पीछे हो लेंगे।
डूबती जिंदगी की बहुत सी कहानियां हैं।
उम्र के ऐसे दौर पर लाखों नादानियाँ हैं।
कुछ हालात और परिस्थितयो के आगे मजबूर हो जाते हैं।
कुछ की दास्तां खत्म तो कुछ के किस्से मशहूर हो जाते हैं।
-Arjun Allahabadi