तेरे नाम का सैलाब मेरे शहरमें आज आया है
तेरी यादें भी मानो बारिश सी आज बरस रही है
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रोक ले इसे कहीं आज बह ना जाऊं इसमें यू
आज फिर तुझे देखने को नज़रे मेरी तरस रही है
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आज वो नहीं मैं जो पहले थी कभी
जिम्मेदारियां कुछ वक़्त ने और भी मुझ पर डाली हैं
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एक वक्त तेरी यादसे महक उठता था जहां मेरा
ख़ुशी आज भी वहीं है पर वज़ह तुम हो ये जता नहीं सकती
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एक पल सोचा कि सारे जज़्बात सारी कसमें तोड़कर आ जाऊं तुम्हारी दुनियामें
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लेकिन प्यार के लिए कुछ रिश्तोंसे बेवफ़ाई नहीं कर सकतीं थी मैं
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गुनेहगार हू मैं तुम्हारी हर इल्ज़ाम कुबूल है मुझे
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क्या कुछ मजबूरी मेरी कैसे बताऊं मैं तुझे
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हो सके तो माफ़ कर देना आज मेरे दिल-ए-नादानको
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दुआओंमें ना सही
बद्दुआ में ही याद कर लेना तुम इस बेवफाको
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कभी मौसम से भी ज्यादा खुशहाल हुआ करती थी
आज महज़ एक पत्थर की मूर्ति बन गई हू मैं
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तुम्हें सोचना भी आज ग़ैर होगा दुनिया के नजरिए से
क्योंकि आज किसी और कि अमानत बन गई हू मैं
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