पांव जमीं पे अच्छे है,
मुजे उड़ने की आदत नहीं है.
सीने मे दर्द बेशुमार है,
मगर रोने की अब जरूरत नहीं है.
मेरा होंसला अब भी बुलंद हैं,
मुजे किसी के अहेसान की जरूरत नहीं है.
हर करतब यही दिखाऊंगा मे,
मुजे किसी रंगमंच की जरूरत नहीं है.
मुजे उठना है अपने पेरो पे,
मुजे किसी के कंधो की अब जरूरत नहीं है.
अकेले चलना मुजे बड़ी अदब से आता है,
मुजे अब किसी के साथ की भी जरूरत नहीं है.
इस बार मेरा सफल होना तय है,
अब हारने का शोक मनाने की जरूरत नहीं है...
-Paresh Bhajgotar