टूट गया आज संयम भी महाकाल का,,,
प्रकृति ने दिखाया अक्स अपने रूप विकराल का,,,
जाने कितनी माँगे होंगी सूनी आज सिन्दूर पोंछ,,,
देख नहीं पाएँगी माँए कितनी अब मुँह अपने लाल का,,,
देती है संकेत बारम्बार नित, लाँघो ना सीमा अपने क्षेत्र की,,
मानी ना चेतावनी ए मानस तूने त्रिनेत्र की,,,
रोकी ना प्रकृति से छेड़छाड़, खिलवाड़ जो अपने स्वार्थ हित,,
तो स्वयं होगा उत्तरदायी मानव अपने दुखद हाल का!!!
-Khushboo bhardwaj "ranu"