कुछ अल्फाज़ तेरे थे, कुछ अल्फाज़ मेरे थे,
पर मुहब्बत के जज्बात तो सिर्फ मेरे ही थे.
हर बात पे रूठने के अंदाज़ तो तुम्हारा था,
पर हर बार तुम्हें मनाने का तरीका तो सिर्फ मेरा ही था.
प्यार की शुरुआत का आगाज़ तो तुमने किया था,
पर उस प्यार को मुक्कमल करने का ठेका तो सिर्फ हमने ही ले रखा था.
बिछड़ के जाते वक़्त तुमने एकबार भी पीछे मुड़ के ना देखा था,
पर तुम्हारी उस जुदाई ने हमे कही का ना छोड़ा था.
बड़ी मुद्दतो बाद आज फिर तुम्हें देखा था.
कसम से दिल एकबार फिर धड़क उठा था...
-Paresh Bhajgotar