हे मातृभारती के दीवानों,अपना हूनर तुम पहचानों।
कविता को देनें पहचान नई,निज लेखनी को आयाम दो।।
हो गूढ़ या फिर शब्द सरल,व्यंजना भाव रस डार दो।
इस रीति का तू नवीन मधुकर बनकर,कण-कण से ज्ञान उपहार ले।।
तन-मन अपना बुध्दि सघन ये ,जीवन इस पर वार दो।।
-सनातनी_जितेंद्र मन