नए भोर का आगमन
नहीं, उन्हें पता नहीं होता
कि उनका समूचा व्यक्तित्व
एक कुपोषित ढांचा मात्र है
जिनमें अभाव है भावनाओं का,
क्योंकि उनका पूरा जीवन
बीता है भय के साये में;
ये साये अनेकों रूप धर कर
बंधक बनाए रहे उन्हें
नियमों और परम्परा के नाम पर,
बताते रहे कि सुरक्षित है वो
उनके घेरे में बाहर के थपेड़ों से,
घेरे से बाहर रौंध डालेगी दुनिया उन्हें,
इसलिए उन्हें अनभिज्ञ रखा गया
बाहरी दुनिया से, ज्ञान से,
जीवन के मूल सिद्धांत से;
हरेक शोषक ने स्वांग रचा रक्षक का
आंख मूंदे शोषितों ने विश्वास किया
क्योंकि वे तैयार थे शोषण के लिए;
जिसने आवाज उठाया
शोषकों ने भिड़ा दिया शोषितों को
उनके रहनुमाओं के खिलाफ
और लेते रहे मजा ;
और यूंही चलता रहा चक्र
शोषक शोषितों का - हर तरफ
शोषक चालाकियों पर खुश होता रहा
शोषित अपनी बेचारगी पर तरस खाता रहा,
फिर चखा उसने स्वाद खुशी का,
फिर हंस कर वरण किया मृत्यु का,
फिर एक और, फिर एक और,
इनके रक्त ने लिखा नवीन कहानी
नए भोर का, नई शुरुआत का।