असफल हो पग पीछे न खींच ।
आए तूफान तो आंखें न मींच।
अपनी सोच बदलना तुझको,
आस से अपना सपना सींच।
आसमान तक जाना है।
जमीन पर पहचान रही है।
मंजिल की क्या करें शिकायत,
राहें तक अंजान रहीं हैं।
राह के कंटकों को दूर कर।
थकन आए नहीं मजबूर कर।
बहता चल नदी की धार संग,
दर्द के पल धीर से चूर कर।
पार कर जो चट्टान कहीं हैं।
मंजिल की क्या करें शिकायत,
राहें तक अंजान रही हैं।
जीतने का विश्वास कर तू।
होंठ पर ये मुस्कान भर तू।
ईश्वर में आस्था कम न हो,
अपने से प्यार कर ले तू।
लक्ष्य के बिना सम्मान नहीं है।
मंजिल की क्या करें शिकायत,
राहें तक अंजान रहीं हैं।
अमृता शुक्ला