**कृषक**
जिसने मिट्टी से उगाई है हमेशा ज़िन्दगी।
हर बड़े छोटे को वह तो रोज करता बन्दगी।।
फिर भी उसकी ज़िन्दगी तो आज भी बदहाल है।
है जमीं उसके बदन पर है नही वह गन्दगी।।
जिसने मिट्टी से उगाई है हमेशा ज़िन्दगी।।।
उसकी मेहनत पर सियासत रोज ही होती रही।
फिर भी उसकी बेबसी आराम से सोती रही।।
और कितने ज़ुल्म बाक़ी हैं किसानों पर अभी।
और कब तक वह करेगा अब शितम की बन्दगी।।
जिसने मिट्टी से उगाई है हमेशा ज़िन्दगी।।।
बारिशें हों धूप हो या कड़कड़ाती ठण्ड हो।
वह खड़ा रहता हमेशा खेत औ खलिहान में।।
कर्ज़ में डूबा हुआ है अन्नदाता देश का।
हाय कैसी दुर्दशा में है कृषक की ज़िंदगी।।
जिसने मिट्टी से उगाई है हमेशा ज़िन्दगी।।।
भूख जो सबकी मिटाता भूख उसको ले गई।
पेड़ पर लटकी हुई बस उसकी मिट्टी कह गई।।
जाग जा हलधर अभी अब जंग हक़ की छिड़ चुकी।
जीत पहले जिन्दगी फिर बाद करना बन्दगी।।
तूने मिट्टी से उगाई है हमेशा ज़िन्दगी।।।
-Panna
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