"येआलीशान पत्थरों से बना 'मकान'है सिर्फअब..
पर जब खुशियां,, खिल खिलाती थी हर पल यहां.. 'पत्थर'भी गुनगुनाते थे,, मधुर गीत जहां,,वो,,वो तो अब कल की बात है,,, जब यह मकान 'मकान' नहीं,, 'घर' कहलाता था.. आज सजता है 'मकान' सफलता के 'इश्तिहारो'से... 'मेहनत' का 'परिणाम' लगा रह जाता है 'ईट की दीवारो' पे... पर कभी 'दौड़' में जीतने पर भी 'घर' में 'त्यौहार' सा हो जाता था... छोटी सी कामयाबी पर भी,, हर कोई मुंह मीठा कराता था... दादी जब पल्ले से पैसे निकाल कर सिर पर वारा करती थी चाची जल्दी से सबसे पहले नजर उतारा करती थी... जब
'रानो बुआ' का मैं सबसे दुलारा बन जाता था... वो,,,वो तो अब कल की बात है जब यह मकान 'मकान' नहीं घर कहलाता था!!!
-Khushboo bhardwaj "ranu"