રાહ જોવી...
इंतज़ार करना...
पूरा हो या अधूरा
आसमान का ये चांद रोज़ डाँट लगाता है मुझे
क्यों अपनी अटारी से घूरती रहती हो मुझे !
ठीक नहीं ऐसे किसी का
इंतज़ार करना...
कितना और कैसा इंतज़ार करना !
हर पहले पल उनके आने की आहट में
ढ़ेरों पल जीना
हर दूसरे पल उनके न आने की पीडा में
करोड़ों पलो का मरना
हर तीसरे पल 'वो आयेंगे' इस उम्मीद में
अनगिनत पलो को समेटना
ईन सब में बार-बार खु़द भी
जीना, मरना और फिर जीना, फिर मरना...
अब चांद को मै क्या समझाऊ
मेरी यही नियती है, बस
इंतज़ार करना...
©अनु.