Hindi Quote in Religious by VIRENDER VEER MEHTA

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#गुरु_नानक_जयंती
(551वां प्रकाश पर्व)

भारतीय सभ्यता में आरंभ से ही 'गुरु' का स्थान परमेश्वर से भी ऊंचा माना जाता रहा है। गुरु के द्वारा ही व्यक्ति को सांसारिक ज्ञान न केवल प्राप्त होता है वरण उस ज्ञान का सम्पूर्ण बोध भी होता है। सिख धर्म के महान दार्शनिक और विचारक गुरु नानक देव जी का नाम भी भारतीय जनमानस में बहुत सम्मान से लिया जाता है।
गुरु नानक देव जी ने एक ऐसे विकट समय में जन्म लिया था, जब भारत में विदेशी आक्रमणकारी देश को लूटने में लगे थे और धर्म के नाम पर समाज में अंधविश्वास चारों ओर फैले हुए थे। उनका जन्म रावी नदी के पास तलवंडी गाँव (वर्तमान में पाकिस्तान में है, जिसे ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है) में एक ‘खत्री-कुल’ में 1469 में कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन हुआ था जो दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। पूरे भारत वर्ष में हर वर्ष इसी दिन को ‘नानक-जयंती’ या ‘प्रकाश-पर्व’ के नाम से मनाया जाता है।
गुरु नानक देव जी के पिता का नाम मेहता कालूचंद खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था।
नानक देव जी बचपन से ही गंभीर प्रवृत्ति के थे। बाल्यकाल में जब उनके अन्य साथी खेल कूद में व्यस्त होते थे तो वह अपने नेत्र बंद कर चिंतन मनन में खोए रहते थे। उनका विद्यालय जाना महज़ महज सात वर्ष की आयु में ही छूट गया था। हालांकि उनके बचपन के समय में कई ऐसी चमत्कारी घटनाएं घटीं जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे थे। बचपन से ही इनकी बहन नानकी तथा ग्राम-शासक राय बुलार इनके प्रति गहरी आस्था रखने लगे थे। नानक जी का विवाह बालपन में ही गुरदासपुर जिले के अंतर्गत लाखौकी में रहने वाले मूला की पुत्री सुलक्खनी से हुआ था। परिवार में दो पुत्रों के जन्म के पश्चात 1507 में नानक जी अपने परिवार का भार अपने श्वसुर पर छोड़कर, अपने चार मुख्य साथियों मरदाना, लहना, बाला और रामदास को लेकर तीर्थयात्रा के लिये निकल पडे़ थे।
सिख ग्रंथों में एक उल्लेख मिलता है जिसके अनुसार नानक देव जी नित्य बेई नदी में स्नान करने जाया करते थे, जहां एक दिन वे स्नान के पश्चात वन में अन्तर्ध्यान हो गये। कहते हैं उस समय उन्हें परमात्मा का साक्षात्कार हुआ। परमात्मा ने उन्हें अमृत पिलाया और कहा कि मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा और जो तुम्हारे सम्पर्क में आयेंगे वे भी मुझे प्रिय रहेंगे। इस घटना के पश्चात नानक जी ने विभिन्न स्थानों की यात्राएं कीं और धर्म की अलख जगाने के साथ जन-सेवा के संदेश दिए। उन्होंनें अपने अनुयायियों को मुख्यतः दस मुख्य उपदेश दिए जो उनकी शिक्षा का मूल निचोड़ भी रहे और सर्वत्र जगत के लिए सदैव प्रासंगिक भी रहे।
अपने अंतिम समय (1521-1539) में वे करतारपुर में रहे। और वहीं 1539 में (22 सितंबर) ही उनका निधन हुआ। उन्होंनें अपने अंतिम समय में गुरु गद्दी का भार 'बाबा लहना जी' (गुरु अंगद देव) को सौंप दिया और स्वयं करतार पुर (पंजाब) में 'ज्योति-लीन' हो गए।

गुरु पर्व की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ. . .

/वीर/

Hindi Religious by VIRENDER  VEER  MEHTA : 111618172
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