तुम्हारी आंखें
भी गजब करती है।
समय के साथ ना जाने
क्या क्या रुप ये धरती है।
कभी जुबां बन कर तुम्हारी
हमसे इजहार करती है।
कभी तुम्हारे मन की भाषा बन
हमसे इकरार करती है।
कभी आईना बन हमें
जज्बात तुम्हारे बताती है।
तो कभी हमारे इजहार पर ये
ना जाने क्यों शरमा जाती है।
कभी नटखट सी अदाएं इनकी
हमको हंसना सिखाती है।
तो कभी कभी इनकी नमीं
हमें हमारी गलती भी समझाती है।
पर इन सबसे बड़ के है
इन आंखों की मासूमियत
जो धड़कन बन
हमारे दिल को धड़काती है।
हमें हर हाल में ये
जीना सिखाती हैं।