गुजार दिये होंगें तुमने,
कहीं महीने साल
पर काट न सकोगे,
वो एक रात हुं मैं ।
की होगी काफि गुफ़्तुगू
कहि दाफा काफि लोगों से
पर जो दिल पे लगे
वो बात हुं मैं
दुनिया की इस भीड़ मै
जब पाओगे अकेला खुद को..
उस भीड़ मै थामा हुआ हाथ और साथ हुं मैं
बिताए होंगे कहीं हसीन लम्हे तुमने
पर कभी न भूल पावोगे
वो याद हुं मैं