हिंदी
हिंदी का कितना चौड़ा पाट
हिंदी का सुंदर गंगा सा घाट
हिंदी काब्य कल्पना की सिरा
अन्य भाषाओं का पारा गिरा!
जगातीं हिंदी की चंचल हवाएँ
आफिस दे रहीं हिंदी से सेवाएँ
छंद,गीत,कविता ये लिख जाती
खुद को सहज सरल जतलाती!
हिंदी विश्व शांति की सूत्रधार
पूरे राष्ट्र का हिंदी है प्रेमाधार
कुछ राज्यों में होता अपमान
राष्ट्र भाषा सा हो हिंदी सम्मान!
हृदय में करुणा की ये रिमझिम
सरित विचार भाव की सिमसिम
विश्व गगन की अभिमान है हिंदी
माँग भरी स्त्री की जैसे यह बिंदी!
झमाझम बरसे बन बादल कलम
कोरे कागज पे खिलता सा कमल
हिंदी प्रेमी करते नित नित बंदन
'हमदर्द' करे उनका अभिनंदन!
शिव भरोस तिवारी “हमदर्द”