विरह व्याकुल से ग्रस्त
नेत्र अग्न है, अश्रु रिक्त है
दृष्टि त्रस्त है, दृश्य अस्त है
होठ क्षीण है , श्वास क्षुब्ध है
मन मग्न है, तन यज्ञ है
रक्त जड़ है, नाड़ी खिन्न है
हृदय मग्न है, प्रेम व्यग्र है
अंदर द्वंद्व है, बाहर जश्न है
पग नग्न है, राह जर्जर है
जीवन श्रापित है, बंजर है
यथार्थ मृत्यु है, राख है
-© शेखर खराड़ी ( १९/११/२०२०)