उसका अस्तित्व
तस्वीर देखती बिटिया,
अचंभित है
मम्मा भी बच्ची थी कभी,
स्कूल जाती थी
खेलती थी खेल
छुपम - छुपाई,
पालती थी नन्हें शावक,
शिशु मन जिज्ञासु है
पर आश्वस्त है
अपने होने पर,
मां, तब मैं तुम्हारे भीतर थी,
जब तुम खेलती थी
मैं खेलती थी,
जब खाती थी,
मैं खाती थी,
दृढ़ होता है मां का विश्वास भी,
जबसे वो है
उसकी संतति भी कायम है धरा पर।