*****दीवाली *****
" ऐसी मिठाई दीवाली पर कौन खाता है..? " गुस्सा करते हुए रिधिमा ने मिठाई बिना चखे ही कचरे में फेंक दी। कबीर उसे समझाना चाहता था पर उसका गुस्सा देख के कुछ नहीं बोला। कोरोना के कारण कबीर की जॉब बाल बाल बची थी और उसको आधी पगार में मजबूरी से दुगना काम करना पड़ रहा था।
कचरा इक्कठ्ठा करते हुए भावेश के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी। उसके छोटे बच्चे ने आज सुबह उसको बोला था कि -" पापा, आप हर दीवाली पर मिठाई लाने की बात करते हो पर लाते तो नहीं हो। मै जब तक मिठाई नहीं आएगी तब तक खाना नहीं खाऊंगा।" भावेश भी चाहता था कि दूसरे बच्चो के जैसे वो भी आपने बच्चे के लिए मिठाई और पटाखे खरीदे, पर वो भाली भाँति जानता था कि अगर उसने ऐसा किया तो पूरे महीने के खाने के लाले पड़ सकते थे। वो विचारों में डूबा आपने काम कर रहा था कि उसके हाथ में एक बॉक्स आया। उसने देखा तो पूरा बॉक्स मिथाई और चींटियों से भरा हुआ था। उसकी आंखो में एक चमक आ गई। उसने बैठकें सारी चींटियों को दूर किया और खुश होते हुए घर पहुंचा।
शाम को जब पूरा शहर रोशनी से चमक रहा था तब भावेश के घर में संतोष का उजाला फैला हुए था और रिधिमा के घर में असंतोष का अंधकार।
-Hiren Moghariya