jai shree krishna
अनेक स्वरूपों में खोज करे मानव तेरा ,
ज्ञात ना हो उसे ,
कण कण में है तेरा बसेरा ,
कभी मोक्ष पने को तरसे,
तो कभी क्रोध उसपे बरसे,
और कभी खुद क्रोध में बरसे,
जैसी हो नियत और प्रगाढता,
वैसा हो उसका फल,
समझ ना पाया जो,
रह जए वह उलझा,
समझ ना सके,
समझा ना सके,
चाहे कोई कितना भी हो सुलझा।।
-Asmita Madhesiya