Hindi Quote in Poem by shekhar kharadi Idriya

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उंची-उंची इमारतों में रिश्तें दम तोड़ने लगें
छोटी-छोटी झुग्गियों में रिश्तें श्वास भरनें लगें,
भावात्मक और आत्मीयता की कश्मकश में
संसारिक और वैरागीक प्रतिस्पर्धा में
कृत्रिमता और प्राकृतिकता की आड़ में
यथार्थ अंतर की खाई बढ़ती ही रही ,
सही गलत के भ्रम में इंसान उलझता रहा
बेबुनियाद बातों में भरमाता रहा
झूठी आश में छटपटाता रहा
निष्ठुर व्यवहार में घुटता रहा
भ्रष्ट व्यवस्था में मरता रहा
स्वार्थी नज़रों में फंसता रहा
फर्जी झाल में पिसता रहा
धूर्त षड्यंत्रों में छलता रहा
उचित-अनुचित के मार्ग में भटकता रहा
परस्पर वजूद में स्वयं को भुलता रहा
मज़हब-मज़हब में विष घोलता रहा
इंसान इंसानियत को मारता रहा..!!

-© शेखर खराड़ी ( १०/९९/२०२०)

Hindi Poem by shekhar kharadi Idriya : 111606805
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