बिक गए कई शहर और पूछा गया परिंदो से...
में तो दाना खाता चला जाता था शायद इंसान भी यहाँ आता था...
हद तो तब हुई जब टूट गए आशियाँ हज़ार
तब धंसी दिवार से गोली बोली वो इंसान ही था जो हमें चलाता था
बेकार की थी लड़ाई और ना जीत किसिने यहाँ पाई
जंगकी खूबियों खुदको इंसान वो कहलाता था...
-निर्दोश