पहाड़ अभी जिंदा है
सर्पिली राहों में, चीड़ों के पातों में,
कृशकाय लोगों के मजबूत इरादों में,
पहाड़ अभी जिंदा है।
रीति रिवाजों में, लोक व्यवहारों में,
भालों पर अंकित रोली चावल के तिलकों में,
पहाड़ अभी जिंदा है।
गौरा के नथ में, रंगीन पिछौड़े में,
झोरा के धुन पर थिरकते हुए कदमों में,
पहाड़ अभी जिंदा है।
बॉर्डर के जवानों में, गीतों के तानों में,
नित दिन रचते नए कीर्तिमानों में
पहाड़ अभी जिंदा है।
मजबूत कंधों में, हिरणी सदृश पैरों में,
गौरांगी कन्याओं के अधरों की स्मित में,
पहाड़ अभी जिंदा है।
अल्हड़ से बचपन में, स्वछंद जीवन में,
अर्धनिमीलित आंखों के पलते हुए सपनों में,
पहाड़ अभी जिंदा है।