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'तुम मन से प्रेम करती...' कविता
"सपनों से भरे मेरे नैना,
बस देखते तुझे दिन रैना।
आ बैठ मेरे पास, न गुजरे ये लम्हा,
मुझे तुमसे बहुत कुछ है कहना।
बहती हुई हवा सी तुम,
छू जाती मेरे मन को,
कैसे भूल जाऊँ तेरी
प्यारी सी छुअन को।
आँखों में सजी आशा की किरण हो,
बेहतरीन कल की उम्मीद भी तुम्ही हो।
सपने हजारों सजे हैं मेरी इन आँखों में,
हृदय में बसी हो, बस जाओ इन साँसों में।
अपनापन सा लगता है
तुम्हारी प्यारी बातों में,
दिल हर पल याद करता है,
इन ठंडी सर्द रातों में।
कैसे समझाऊँ, गुरु!
मैं तुझे प्यार करता हूँ,
तू भी कर दे इकरार,
मैं तेरा इंतज़ार करता हूँ।
यूँ पलटकर तेरा चितवन से देखना,
उफ़्फ़! खुद को ही भूल जाता हूँ मैं।
दिल में भरकर उमंग-उल्लास,
फिर खुद ही झूम जाता हूँ मैं।।
सादगी, शालीनता और लज्जा
अनमोल आभूषण हैं स्त्री के,
होकर के समाहित तुझ में,
जगाते हैं प्रेम मुझ में।
याद आती हर-पल तुम्हारी शोख़ अदाएँ,
चाहती तो तुम भी बहुत हो,
जाने क्यों, रोक रही हो खुद को।
कुछ मर्यादा और कुछ कर्त्तव्य तुम्हारे,
शायद, डाल रहे हैं बेड़ियाँ
जो बन्धन हैं स्त्री जीवन के।।
कुछ तो बात है, जो तुझ में खास है,
मर्यादित तुम हो तो, तो मर्यादा में मैं भी।
अंतर नहीं है प्रीत में अपनी,
बस तुम कह नहीं पाती हो, और
मैं लफ्जों से बयाँ करता हूँ।
तुम 'मन' से प्रेम करती हो,
मैं 'दिल' से प्रेम करता हूँ।।
सोचता हूँ कभी-कभी
तुझे मैं खुद में देखता, महसूस करता हूँ
तुम मुझ में रत रहती हो,
मैं तुझ में रत रहता हूँ,
सच में 'परम-आनन्द' पा लेता हूँ।"
परमानन्द 'प्रेम' NHR 💞
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