क्या बताऊं तुमको कि हिज्र में हम क्या करते रहे
साहिल की जुस्तजू में मौजों की जानिब बढ़ते रहे
गोया तुम हो पूरे चांद की रात के चांद के मानिंद
हम तो चकोर के मानिंद रोज पूरी रात ताकते रहे
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-सन्तोष दौनेरिया
(हिज्र - वियोग, साहिल - तट, जुस्तजू - तलाश, मौजों - लहरों, जानिब - तरफ़, गोया - जैसे, मानिंद - समान या सदृश, चकोर - एक पक्षी जो चंद्रमा का प्रेमी माना जाता है)
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