तन्हा
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तन्हा दिल की है हर रह-गुज़र तन्हा
गली तन्हा,डगर तन्हा,है शहर तन्हा
एक ही सी है हम दोनों की क़िस्मत
उधर है वो तन्हा,तो मैं हूं इधर तन्हा
चांदनी रात और साथ आपकी याद
आलम-ए-तन्हाई में कहां मगर तन्हा
छोड़ा हो सा'थ जैसे खुद के साये ने
बिन आपके हूं कुछ इस क़दर तन्हा
हो कर मेहरबाॅ॑ आ भी जा जाने जाॅ॑
मुश्किल है अब तुम बिन बसर तन्हा
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-सन्तोष दौनेरिया
(रह-गुज़र=रास्ता, आलम-ए-तन्हाई=अकेलेपन का माहौल, मेहरबाॅ॑=दयालू,जाने जाॅ॑= संबोधन में 'मेरे प्यार' के लिए प्रयोग भब्द, बसर=जीवन निर्वाह)