तुम
-----
पहती तमन्ना आखिरी आरज़ू हो तुम
है जिसकी जुस्तजू वो ख़ूब-रु हो तुम
बनारस की हसीन एक सुबह तुम हो
वो ख़ूबसूरत शाम-ए-लखनऊ हो तुम
हर सिम्त रोशन है आपके ही नूर से
नज़र जिधर भी डालो चार-सू हो तुम
शाख़-ए-गुल पर सुर्ख़ वो गुल तुम हो
हर चमन कली की रंग-ओ-बू हो तुम
ख़ामोशियाॅ॑ भी मेरी कमाल करती है
बहरे ख़्वाबों में की,वो गुफ़्तगू हो तुम
----------------------
- सन्तोष दौनेरिया
(तमन्ना और आरज़ू= आकांक्षा, जुस्तजू= तलाश, ख़ूब-रु= हसीना, सिम्त= दिशा, रोशन=प्रकाशमान, नूर= प्रकाश, चार-सू= चारों तरफ़, शाख़= डाली, गुल= फूल, सुर्ख़= गहरा लाल, चमन= फुलवारी, रंग-ओ-बू= रंग और ख़ुशबू, गुफ़्तगू= बातचीत)