Hindi Quote in Poem by Santosh Doneria

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ज़िंदगी
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होती है यूं हर पहर अपनी
ठहरी हो जैसे सहर अपनी

पहुंचे वहाॅ जहाॅ से हमको
खुद ही नहीं ख़बर अपनी

न कुछ शिक़ायत जिंदगी से
फिर क्यूं ये चश्म तर अपनी

मांगे ख़ुदा से तो क्या मांगे
दुआ अब है बेअसर अपनी

अब ये सूरज ग़ुरूब भी हो
अब कटे ये दोपहर अपनी

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- सन्तोष दौनेरिया

(पहर- तीन घंटे का समय, सहर- सुबह, चश्म- आंख, तर- गीली, ग़ुरूब- किसी तारे जैसे सूरज का डूबना)

Hindi Poem by Santosh Doneria : 111590038
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