Hindi Quote in Poem by Dr.Sharadkumar K Trivedi

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चांदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी

फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा
बर्फ़-सी वो पिघल रही होगी

कल का सपना बहुत सुहाना था
ये उदासी न कल रही होगी

सोचता हूँ कि बंद कमरे में
एक शम्मा सी जल रही होगी

तेरे गहनों सी खनखनाती थी
बाजरे की फ़सल रही होगी

जिन हवाओं ने तुझ को दुलराया
उन में मेरी ग़ज़ल रही होगी

मेज़ पर कोहनी टिकाए बैठे' होने का भाव हो या 'गहनों की खनक' और 'बाजरे की फ़सल' के बीच का तारतम्य - अद्भुत कल्पना का नज़ारा पेश करते हैं|
DUSHYANT KUMAR
by

Hindi Poem by Dr.Sharadkumar K Trivedi : 111585665
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