कौन कहता हैं कि फिजूल हूं मैं?
कि तिरे ही चरण की धूल हूं मैं।
हो न कीमत कहीं, निर्गुण हूं मैं,
इक तिरेे साथ में कुबूल हूं मैं।
तोड़ना हैं, मरोड़ना हैं वो,
तै करो ख़ुद ही, इक गुल हूं मैं।
और कमज़ोर हूं पड़ा कैसे?
जिन के सामने त्रिशूल हूं मैं!
तुम बहा दो मुझे, कहीं पर अक्ष,
कोई समन्दर, नदी में, फूल हूं मैं।